अहंकार जब किसीके अंदर हैँ आता,
तभी से सुरु होति हैँ उसके विनाश कि गाथा |
रावण जैसा विद्वान और ज्ञानी भी
नहीं बच पाया था इस अहंकार के वश से |
किया था करके हरण सिता मैया का,
स्वयं अपने हि विनाश का प्रारम्भ |
जब महाभारत के युद्ध मे अर्जुन अपने तिरों से
धकेल देते थे कर्ण के रथ को मिलों दूर तक ;
लेकिन कर्ण सिर्फ कुछ हि दूर तक धकेल पाते थे
अर्जुन के रथ को; फिर भी श्री कृष्ण करते थे तारिफ़
कर्ण कि ; ये देख नहीं रेहपाते थे चुप अर्जुन ;
और पूछते थे कि है पार्थ ऐसा क्यों करते हो आप |
जबाब मैं कहते थे श्री हरि कि है पार्थ
तुम्हारे रथ पर पूरी ब्रह्माण्ड का भर लिए हुए
मैं बिराजमान हूं और हनुमान जी ध्वजा के रूप मैं
तुम्हारे रथ पर हें ; इस स्तिथि मैं कोई कर्ण जैसा
महावीर हि पीछे धकेल सकता है तुम्हारे रथ को |
फिर आखिर कर जब युद्ध संपन्न हुआ
तो श्री द्वारकाधिश ने पहले बोला अर्जुन को
रथ से उतरने के लिए, फिर वे उतारे
और आखिर मैं उन्होंने हनुमान जी को
रथ पर से उतरने के लिए इसरा किया |
जैसे हि हनुमान जी रथ पर से उतरे,
रथ टूटकर बिखर गया और उसमे आग लग गयी |
अर्जुन ने पूछा कि ये कैसे हुआ,
तो श्री कृष्ण बोले कि टूट तो तुम्हारा रथ
बहुत पहले हि गया था, परन्तु हनुमान जी ने
बचा रखा था तुम्हारे रथ को |
हम सब जब सफल होते है
तो अपनी तरक्की का सारा श्रेय
स्वयं को हि देने लगते हें, जो कि
सच नहीं है |
हमारे जिवन मैं सारे लोग जिनकी मौजूदगी
हमारे जिवान को सुखी और सम्पन बनाती है ;
हमारे माता पिता, भाई बहन,पति पत्नी,बच्चे,दोस्त,
रिस्तेदार,सगे सम्बन्धी, सहकर्मी, हमारे घर मैं काम
करने वाले,सभी का योगदान हमारे जिवान मैं महत्वपूर्ण है |
हमारे सफलता के पीछे इन सभी का हाथ है |
सिर्फ अकेला आदमी सफल नहीं हो सकता |
और भगवान के कृपा के बिना तो एक पत्ता
भी उसकी जगह से नहीं हिलता है |
तो अहंकार किस बात का है अहंकारी इंसान को,
ये तो सरासर बेवकूफी है |
हमें उस पर्वरदिगार का शुक्रगुजार होना चाहिए,
और सदेव मन मैं कृतज्ञता रखनि चाहिए |
~Sidhartha Mishra
Sambalpur, India