कुछ रिश्ते जुड़ते, कुछ टूटते चले गए।
सुलझते से कुछ, कुछ उलझते चले गए।
निखरते, संवरते, बिखरते रहे कुछ।
धागों में बंधे थे कुछ,
कुछ बस खुलते चले गए।
सुबह की पहली धूप की तरह।
कुनकुने, सुकून से भरे थे कुछ।
कुछ पिघलती हुई बर्फ़ की तरह।
ठंडे, फिसलते हुए।
कुछ पानी के जैसे , एकदम आर पार।
पर क्या कभी पानी रुका है किसी के लिए?
कुछ उन जलते, सुलगते,बुझते से अंगारों की तरह।
गरम, तपते हुए। तपाते हुए। तड़पाते हुए।
बुझने से पहले शोर बहुत मचाते हुए।
कुछ पीपल के पत्तो के जैसे,
हरे भरे, लहलहाते, कुछ सूखे।
कुछ पुरानी किताब के पन्नों के जैसे,
पीले, लेकिन जैसे उनकी खुशबू
ले जाती है यादों मे कल की
मुस्कुराती हुई, गुदगुदाती हुई।
आते गए, कुछ जाते भी गए।
जो हाथ थामे थे कभी,
कुछ वक्त के साथ बदले।
कुछ वक्त बदलते चले गए।
कुछ उंगलियों की पकड़ से छूटते चले गए।।
~Samriddhi Doshi
Indore, India
Fantastic poem. Really enjoyed this… Looking forward to more work from you.
Thank you so much for your kind words.
Very lovely poetry.
This part is my favorite ?
कुछ पुरानी किताब के पन्नों के जैसे,
पीले, लेकिन जैसे उनकी खुशबू
ले जाती है यादों मे कल की
मुस्कुराती हुई, गुदगुदाती हुई।
Beautiful …