Poetry

जीवन का मोल

एक पेड़ था ताल  किनारे

बरसों से छतनार खड़ा

बड़ी सघन थी उसकी शाखें

उसको था अभिमान बड़ा

जितने सुंदर पंछी पाँखी

ताल किनारे आते थे

उसकी डालियों में अपना

रैन बसेरा बनाते थे

दिन भर उसकी छत के नीचे

लोगों की आवाजाही थी

कुछ प्रेमी जोड़े बतियाते थे

कुछ थके लोग सुस्ताते थे

ऐसे ही बरसों बीत गए

कितने ही सावन रीत गए

इक दिन ऐसा भी आ हि गया

जो हर जीवन में आता है

अब पत्ते सारे छोड़ चले

शाखें भी हो गयी हैं बोझल

चिड़ियों के रैन बसेरे भी

अब आँखो से हो गए ओझल

सूखी पपड़ी है अब तन पर

और मन में है इक सूनापन

पर जड़ें अभी भी जमीं हुई हैं

थामे रक्खे हैं उसका अहम

अब दिनभर वो चुप्पी साधे

बस देखा करता है चहुँ ओर

आँखो में बस इक आस लिए

कोई तो आएगा इस ठौर

एक दिवस जब भोर हुई

उसने अपनी आँखें खोली

अहा यह क्या मैं देख रहा

यह दृश्य बड़ा अनूठा है

लगता है मेरी डाली पर

एक हरित नवांकुर फूटा है

बड़े जतन से उसने झुक कर

देखा तो इक नन्ही लता

उसके घुटनों को थामे हुए

चढ़ने की कोशिश में है रत

उसने कहा तुम कौन हो बिटिया

क्या भूल गयी हो तुम रस्ता

मुझ बूढ़े से अब क्या तुमको

मिलने की आशा है इस ऋत

तरुणी लता बोली -बाबा

तुम क्या जानो अपना गौरव

मेरा अस्तित्व तुम्हारे दम पर

तुमसे ही मिलता मुझको बल

तुमने वर्षों भर काम किया

अब थोड़ा सा विश्राम करो

मैं हूँ ना तुम्हारे जीवन में

तुमने ही तो उँगली थामे

मुझको है जीवन दान दिया

अब मैं फूलूँगी और फलूँगी

तुम्हें बना अपना आधार

फिर से पंछी लौटेंगे तुम पर

फिर आएगी तुम पर बहार

                                                   ~ Hemamalini Jairam 

                                                        India

One Comment

  1. Jeevan mein aayegi phuhar…… beautiful picture created by your lyrical words.