एक पेड़ था ताल किनारे
बरसों से छतनार खड़ा
बड़ी सघन थी उसकी शाखें
उसको था अभिमान बड़ा
जितने सुंदर पंछी पाँखी
ताल किनारे आते थे
उसकी डालियों में अपना
रैन बसेरा बनाते थे
दिन भर उसकी छत के नीचे
लोगों की आवाजाही थी
कुछ प्रेमी जोड़े बतियाते थे
कुछ थके लोग सुस्ताते थे
ऐसे ही बरसों बीत गए
कितने ही सावन रीत गए
इक दिन ऐसा भी आ हि गया
जो हर जीवन में आता है
अब पत्ते सारे छोड़ चले
शाखें भी हो गयी हैं बोझल
चिड़ियों के रैन बसेरे भी
अब आँखो से हो गए ओझल
सूखी पपड़ी है अब तन पर
और मन में है इक सूनापन
पर जड़ें अभी भी जमीं हुई हैं
थामे रक्खे हैं उसका अहम
अब दिनभर वो चुप्पी साधे
बस देखा करता है चहुँ ओर
आँखो में बस इक आस लिए
कोई तो आएगा इस ठौर
एक दिवस जब भोर हुई
उसने अपनी आँखें खोली
अहा यह क्या मैं देख रहा
यह दृश्य बड़ा अनूठा है
लगता है मेरी डाली पर
एक हरित नवांकुर फूटा है
बड़े जतन से उसने झुक कर
देखा तो इक नन्ही लता
उसके घुटनों को थामे हुए
चढ़ने की कोशिश में है रत
उसने कहा तुम कौन हो बिटिया
क्या भूल गयी हो तुम रस्ता
मुझ बूढ़े से अब क्या तुमको
मिलने की आशा है इस ऋत
तरुणी लता बोली -बाबा
तुम क्या जानो अपना गौरव
मेरा अस्तित्व तुम्हारे दम पर
तुमसे ही मिलता मुझको बल
तुमने वर्षों भर काम किया
अब थोड़ा सा विश्राम करो
मैं हूँ ना तुम्हारे जीवन में
तुमने ही तो उँगली थामे
मुझको है जीवन दान दिया
अब मैं फूलूँगी और फलूँगी
तुम्हें बना अपना आधार
फिर से पंछी लौटेंगे तुम पर
फिर आएगी तुम पर बहार
~ Hemamalini Jairam
India
Jeevan mein aayegi phuhar…… beautiful picture created by your lyrical words.