खुदके सवालों की जवाबदेही कौन कराए,
जिंदगी सोच में भी, कैसे चलती जाए,
क्या दस्तुर है जहान का, हर पल खुशी कौन जताए,
समझ क्या सदी से लेनी है, आखिर हर सदी कहां तक ले जाए,
जिंदगी इस मंथन को कुछ युं सुलझाए,
कि मुनादी करती सदी, जब फरियादी हो जाए,
दबी हुई खुबी भी, हर बदी को हटा, वेदी हो जाए,
समझ लेती है जिंदगी तब, कि उस्तादी है हर तलबदार की भी,
तभी तो कैदी हो कुछ पल अंधेर की, वो किरण ही,
कुटुम्ब की बुनियादी, उम्मीद हो जाए,
सहज है आजकल, चलना जिंदगी का, ऐसी ही वादी में,
इसलिए धन्यवाद ही करती है, कोई फरियादी जो मिल जाए,
खुद तक ही पहुंची है आखिर, खुदी खुद्दार फरियादी की समझ कर,
तभी तो जिंदगी, लंबी शताब्दी में आजादी से,
खुदके सवालों की खुदही जवाबदेही भी करती जाए,
दस्तुर जहान का भी यही है, इसीलिए, मन को खुशी का जहान बना, बस खुशी ही बिखेरती जाए,
दिल तक ही दस्तक देती है, सदी की हर पहेली भी,
और ऐसे ही, दिल तक पहुंच कर जिंदगी,
हर पहेली की भी जवाबदेही खुदही करती जाए।
~ Monika Dagar
New Delhi, India