Poetry

रेत के शहर में

रेत के शहर में एक

खूबसूरत सा फूल खिला

बेपरवाह झूमता,

लहराता गुनगुनाता

धूप की गर्म किरणों संग

भी मुस्काता इठलाता.

उसे ख़बर कहाँ थी बहुत

जल्द सब बदल जाएगा

लाख कोशिशों बाद भी

वह कुम्हला ही जाएगा

अपनी अदाओं से सबको

उसने प्यार करना सिखाया

रंग और नूर से अपनी

मुश्किलों में ख़ुश रहना बताया.

पंखुड़ियां भले ही बिखर गईं

झुलस कर धूप में

अपनी खुशबू से उसने

जीने का हुनर सिखाया.

 

                                                 ~ Dr. Shivangi Srivastava

                                                       Motihari, India

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