Poetry

गहरी नींद

वो कर्मठ था
किसी धुन में मग्न
अपने फितूरों पे सवार
कुछ कर गुज़रने को आतुर ।
ज़मीनी हक़ीक़त खूब जानता था वो
और ये भी के कितने आये और चले गये
पर कुछ भी नहीं बदला ।
लेकिन उसको इन बातों से फर्क़ नहीं
उसको था तो बस इक जुनून
के फर्क़ पड़े
उसके अथक प्रयासों से
और ना भी पड़ा तो क्या हुआ
कम से कम इतना तो निश्चित किया उसने
के जब वो सोयेगा
तो सोयेगा
एक गहरी नींद ।

वो कर्तव्य-विहीन था
किसी मद में चूर
अपनी तुच्छता में तल्लीन
बेकारी और निकम्मेपन पर आत्ममुग्ध ।
ज़मीनी हक़ीक़त से तो वो भी खूब वाक़िफ़ था
के कितने आये और चले गये
पर कुछ भी नहीं बदला
उसके होने ना होने से इस दुनिया पे क्या फर्क़ पड़ जायेगा
ठीक वैसे ही जैसे औरों के
फिर वो क्यूँ इन फज़ूल के पचड़ों में पड़े
कम से कम इतना तो निश्चित किया उसने भी
के जब वो सोयेगा
तो सोयेगा
एक गहरी नींद ।

और इन दो किनारों के दर्मियाँ हूँ मैं
और तुम
अपने मन की लहरों पे झूलते
किनारों को घूरते
कहीं पहुंचने को व्याकुल ।
दोनों किनारों का अपना तिलिस्म है
एक अद्वितीय आकर्षण
और ये बेलगाम लहरें धकेलती रहती हैं हमको
इधर से उधर
मगर उतारती नहीं जीवन पर्यंत
किसी भी तट पर
और यूँ करती हैं ये निश्चित
के हम रहें बेचैन ता-उम्र
और जब सोयें
तो रहें करवटों के हवाले
बस तरसते रहें
पूछते रहें खुद से
के कब आयेगी हमको
एक गहरी नींद ।।

                                                          ~Atul Kapoor

                                                               Kanpur, India

3 Comments

  1. प्रशांत

    बहुत खूबसूरत

  2. विवेक अग्रवाल

    चाहे कर लो दुनिया टूर…आई गजब है कानपुर का अतुल कपूर ????