Poetry

आडंबर

हम ढकोसला बहुत करते हैं

ये करना चाहिए, ये नहीं

ऐसे करना चाहिए, वैसे नहीं

ऐसे नहीं किया तो ये होगा

वैसे नहीं किया तो वो होगा

बस इसी में ज़िन्दगी

कटती रहती है.

ये रीति रिवाज

हमने ही तो बनाए हैं

ये डर की सौगात हमने ही विरासत

में अपने बच्चों के भीतर भी

तो सजाये हैं

क्यूँ कुछ हो जाएगा

ये क्यूँ नहीं सोचते हैं हम.

क्या ऊपर वाले ने इन

रस्मों के साथ हमें पैदा किया था

क्या ये आडंबर हमे इस

देह संग उसने दिया था

नहीं ना

हम आए थे अकेले

जाएंगे अकेले

रह जाएंगे ये ढकोसले

यहीं धरे के धरे.

                                                                                 ~ Dr Shivangi Shrivastava

                                                                                   Motihari, India

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