क्यूँ विचलित हो चला है आज,
क्या मुझसे तू चाहता है,
आज अपनी ही बातों पे तू क्यूँ अटल नहीं हो पाता है।
मेरी जिंदगी की कहानी एक तू ही तो जानता है,
फिर भी इतनी उलझनों में क्यूँ मुझको तू डाल जाता है।
सही-गलत का रास्ता एक तू ही तो मुझको दिखाता है,
फिर आज क्यूँ मुझको तू इतना सताता है।
जिंदगी की सारी कठिनाइयों में बस तू ही एक मेरा साथ निभाता है,
तो फिर आज क्यूँ मुझको तू बीच मझधार में छोड़ के जाना चाहता है।
ऐ! मेरे मन एक तू ही तो मेरा सहारा है,
थम जा अब बस तू,
इससे और दूर मुझसे क्यूँ जाना चाहता है।
~ Shatakshi Sarswat
Ghaziabad, India