मैं एक पथिक हूँ
तलाश रहा हूं
मन का सुकून
दिल का चैन
मंजिल दूर जान पड़ती है
रास्ता बहुत लंबा है
पर चलते जाना है
बिना रुके
बिना थके.
अरे भाई पथिक हूँ
कैसे रुक जाऊँ
कैसे थक जाऊँ
रास्ता पथरीला सही
कांटों से भरा सही
पर चैन कहाँ
हो भी क्यूँ.
मैं एक पथिक हूँ
अड़चने तोड़ नहीं सकतीं
मुश्किलें मोड़ नहीं सकती
हर राह आसान नहीं होती
पर मंजिल पर पहुंचने का
सुख हिम्मत टूटने नहीं देता.
मैं एक पथिक हूँ
कभी अधीर हो
कभी कुछ धीर हो
मंजिल पर नजर रख
हौसले ना अडिग हो
चलते जाना है
बस चलते ही जाना है.
~ Dr Shivangi Shrivastava
Motihari, India