Poetry

मैं एक पथिक हूँ

मैं एक पथिक हूँ

तलाश रहा हूं

मन का सुकून

दिल का चैन

मंजिल दूर जान पड़ती है

रास्ता बहुत लंबा है

पर चलते जाना है

बिना रुके

बिना थके.

अरे भाई पथिक हूँ

कैसे रुक जाऊँ

कैसे थक जाऊँ

रास्ता पथरीला सही

कांटों से भरा सही

पर चैन कहाँ

हो भी क्यूँ.

मैं एक पथिक हूँ

अड़चने तोड़ नहीं सकतीं

मुश्किलें मोड़ नहीं सकती

हर राह आसान नहीं होती

पर मंजिल पर पहुंचने का

सुख हिम्मत टूटने नहीं देता.

मैं एक पथिक हूँ

कभी अधीर हो

कभी कुछ धीर हो

मंजिल पर नजर रख

हौसले ना अडिग हो

चलते जाना है

बस चलते ही जाना है.

 

                                                                     ~ Dr Shivangi Shrivastava

                                                                         Motihari, India

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