Poetry

आज धरा पर है उतरा

आज धरा पर है उतरा

मानव के मानस को झिंझोड़

कोई जन्तु विशाल भयानक सा

न हाथ पाँव न देह-नयन

हिलता है धर धर दानव सा

 

नभ में उड़ान भर भर छलांग

करता है नृत्य,  तांडव सा

सब ओर जोर  मच रहा है शोर

विस्मृत चकित अब मानव का

 

करता भरता इस सृष्टि का

तुझेदेख रहा है ध्यान लगा

एक दानव है एक मानव है

देखें किसका है दाव लगा

 

कण कण में व्याप्त जीवन को

सुंदर कृतियों में मैनें रचा

आज भी देखो धरती पर

सुर असुर का है संग्राम मचा

 

पर धैर्य धरोऔर प्रेम करो

वह पावन वेला आएगी

फिर मानव की दानव पर

विजय अवश्य हो जाएगा

 

विजय का यह संदेश हे मानव

जन जन तक तुम पहुँचाना

प्रकृति है अनमोल रत्न

रक्षा का धर्म निभाना

 

~Renu Gupta 

New Delhi, India

2 Comments

  1. Beautifully written ….. Ma’am ? wonderfull

  2. Very nice.