Poetry

हे मातृभूमि..!

अक्षय तेरा ज्ञान है हर युग में होए उजागर,
अमित गुणों वाला कोई सत्पुरुष जब,
प्रबल अपनी शक्ति से चेतन रहस्य जाता जान,
सदियों तक हे मातृभूमि, तेरे गुणों का होता गान।

रोहित वर्ण तू क्रोध में ,पर विनय तेरा स्वाभाव,
रवि समान तेज तेरा,ऋषभ सा है वेग तेरा..!
रजत-वर्ण पंकज सी काया,चहु तरफ तेरा विस्तार छाया,

हिमालय से महासागर तक, सिंध से अरुणाचल तक,

विचरती भूमि ने तेरा परिचय कराया..!

अतुल्य तेरा सौन्दर्य, ग्राम-वन सब करें शृंगार,
हिमालय आदि.. से पर्वत पहरा हो करते जहां,
गंगा, यमुना… देवियां क्रीड़ा करने पहुंची वहां,
हे धन्य मातृभूमि ! तेरी महानता किसने न सुनी..!

अद्भुत साहस का परिचायक इतिहास तेरा,
सहस्र गाथाओं ने सुनाया परिचय तेरा,
सनातन तेरी उपस्थिति धरा पर,
जगत की तु आत्मा कहलाए, आगामी समय,
इस सत्य का विश्व को बोध कराए..!

स्वयं रघुकुल वंशज राघव जैसे,
विक्रांत राजाओं ने जहां राज किया,
ऐसे देश में जन्म लेकर ,
जीने का है सौभाग्य मिला..!

हे जननी मातृभूमि हम सब हैं तेरी सन्तान,
विनीत वन्दना गाएं तेरी,देना आशीष विशेष,
कर्म कोई ऐसा कर पाएं हम ,
ऋण कुछ तेरा चुका जाएं हम…!

                                                                             ~ Anshul Sharma

                                                                          Jammu, India

6 Comments

  1. Dr neha sharma

    Great bro,very nice lines with deep meaning???

  2. Tirthankar Pal

    Wonderful

  3. One can picturise the beauty of our dear Matrabhumi through the imagery. It’s a wonderful poem.