देखा है मैंने वाहनों को सर्र से निकलते हुए
पहियों को आग उगलते हुए
और अकसर चालकों की गलती से
कई गाड़ियों को उलटते हुए
कई दिनों के सन्नाटे के बाद
पदचाप सुनी
साइकिल की चेन की आवाज सुनी
कुछ तेज कदम
कुछ भारी कदम
नन्हे कदमों की कोमल थाप
नंगे पैरों की सकपकाई चाप
मेरी गरम सतह पर कुलबुलाते
पनीली आँखों से आँसू छलकाते
पर लगातार चलते पाँव
रिसते छालों वाले पाँव
रात को भूख से सुबकते सोते
सुबह फिर चल पड़ते, न रुकते
फिर कभी खून यहाँ छिटका तो कभी वहाँ
हौसला न कम हुआ, ऐसा कारवाँ !
लहूलुहान पैर चलते ही रहे
मेरा सीना रंगते ही गए
न मौत का डर न जान की फिक्र
तुम शायद भूल जाओ उनका जिक्र
मैं तो सड़क मात्र हूँ
गूँगी हूँ, निरंतर हूँ
चिरकाल तक यूहीं रहूँगी
गाँव को शहर, शहर को गाँव से जोड़ती रहूँगी
पर अपने काले सीने से
इन रक्त रंजित पैरों के निशान न मिटने दूँगी।
~ Punam Sharma
India
Tugs your heart … beautifully written
well expressed … and an eye opener