Poetry

या तो जानकारी पुख्ता नहीं

या तो जानकारी पुख्ता नहीं
या फिर मुद्दई को मुद्दा नहीं

मुखालफत क्यूँ ना हो, मगर
शहर फूँक दे वो बच्चा नहीं

फसाद होगा तो हश्र भी होगा
हश्र का फिर कोई आशना नहीं

शक़ है तो खिलाफ चले, मगर
पीछे चले जिसके वो सच्चा नहीं

काटकर ले गया जो नक्शा ए नौ
फिरसे क्यूँ आया और लौटा नहीं

दहर में कहीं पनाह ना पाता जो
करता क्या गर याँ आता नहीं

उधर रह गया था कभी अलबत्ता
हिंद के सिवा कोई आसरा नहीं

आस्माँ ही ना मिले सर छुपाने को
कुफ्र की इतनी भी सज़ा नहीं

काफिरों का भी खुदा होता है
ऐसा थोड़ी ना है के खुदा नहीं

मौत से बदतर है मौत का साया
सोचता होगा क्यूं मरता नहीं

उधर था तो दीन का मारा था
भाग आया क्युंकि मरा नहीं

बेघर है जो मुद्दत से, ‘बेलौस’
घर उसको मिले तो खता नहीं

                                                          ~ Atul Kapoor

                                                               Kanpur, India

पुख्ता – foolproof
मुद्दई – pursuer
मुखालफत – antagonism
आशना – friend
नक्शा ए नौ – new map
दहर – world
अलबत्ता – beyond doubt
कुफ्र – idolatry
काफिर – idolator
दीन – religion
बेलौस – pen name

2 Comments

  1. संगीता सेंगर

    चंद पंक्तियों में सत्य दिखा दिया

  2. What a lovely piece of work & so beautifully penned-in, brim full of feeling and emotion !!

    Well done Mr.Atul & keep this good work going…..

    Regards
    $arab Bhatty ?