स्नेह, सरल चाँदनी
सी मन को छू गयी…
वो स्मृति आज भी
जीवित है मन की यात्रा में,
नन्ही नौकाा
तैरती है होले -होले
जैसे सरोवर में…
इस आवाज़ाही में
लम्हां कहाँ ठहरा है?
स्वांस और निस्वांस
के अन्तराल इत्मीनान है
की तुम मेरे साथ हो…
प्रगाढ़ रहे स्नेह हमारा,
होना संवेदना अवरुद्ध
झील की सतह
पर जमीं बर्फ सा
स्नेहामृत छलकता रहे
आत्मा का अपनी
जन्म-जन्मान्तर तक…
~ Anjana Prasad
Nagpur, India