Poetry

मेरी याचना

आम्र पत्तिओं का बन्दनवार

रंगोली से सजा द्वार

आस्था का दीप जला

अंतः मन का शंखनाद

श्रद्धा सुमन अँजुरी भर

हे !अम्बे माँ करो स्वीकार।

पड़े आहुति

शुम्भ-निशुम्भ

और चण्ड-मुण्ड

से पतित विचारों की।

हो वध,महिषासुर से

दुष्कर्म हमारे…

समाज का वह

खोखला हिस्सा,

जिसमें पनप रहे रावण

अनजाने,अनदेखे

धड़कन  बढ़ाते…

वध हो उनका।

न हो संग्राम और

पतन मानवता का

मद्धम-मद्धम

भर जाये

कलश

प्रेम का…

                                            ~ Anjana Prasad

                                                   Nagpur, India

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