तुम रात की स्याही की तरह
मेरी जिंदगी में घुसपैठ कर गए
अब मुझे अँधेरों में रहने की आदत सी हो गई है
झूठ के पर्दे के पीछे रहते-रहते
सच की चमक अब बर्दाश्त नही होती
काश तुम से कभी मुलाकात न हुई होती
पर फिर सोचती हूँ सच और झूठ,
रोशनी और अँधेरे में फर्क कैसे पता लगता?
~ Punam Sharma
India