ये दौर है उड़ानों की, दौड़ना भी ज़रूरी है..
पर थकने का इंतज़ार न कर,
यूही थमना भी ज़रूरी है |
चल चल कर, बस कर.. रुक जाना
कही छाँव में बैठ आराम तो कर
कुछ बूँद पसीने की तो पोंछ
कुछ देर ज़रा विश्राम तो कर|
ज़रा मुड़के देख ले अपनों को
जो दूर बैठ तुझे ताक रहे
तेरी मंज़िल की ओर बढ़ने की
गति और पथ को सराह रहे |
उनको भी एक मुस्कान तो दे
कुछ देर बैठ कर बात तो कर,
कह फिर उठ कर जाऊंगा मैं
निर्जनता को बेज़ार तो कर |
ठहर जा .. एक है पवन चली ..
ज़रा रूककर एक सलाम तो दे ..
आँखे मीच के बाह पसार,
थमकर ज़रा सी श्वास तो ले |
तेरी एक तबस्सुम उसकी भी,
कुछ उसका भी आभार तो कर
वो किरण धुप की फ़ैल रही,
ज़रा थमकर कुछ इक़रार तो कर |
कुछ क्षण इनको महसूस तो कर
फिर से उठना जाना चल कर |
ज़रा प्रतिबिम्ब को देख सही
तेरी छवि कैसी है हाल तो पूछ
नैनो में रस की धार है क्या ?
या नमी भी है ये बात तो पूछ |
ये चमक है बस या तेज प्रभा
कुछ देर निहार के जांच तो कर
ये तत्व तेरा उपयुक्त है आगे ..
बढ़ने को ये सवाल तो कर |
कोई कोना अंधियारा तो नहीं
ज़रा रुक रुक कर चिराग तो कर
कोई चाव बन रहा याद कहीं
थम कर उसको फिर प्यार तो कर |
जो साथ चले थे बचपन से
उनका तो कभी दीदार भी कर
किसी पुकार को था अनजान किया
ज़रा रूककर उसकी बात तो कर|
ये दौर है उड़ानों की , दौड़ना भी ज़रूरी है
पर थकने का इंतज़ार न कर,
यूही थमना भी ज़रूरी है |
~ Aishwarya Vashistha
Mumbai, India