Poetry

ठहर

ये दौर है उड़ानों की,  दौड़ना भी ज़रूरी है..

पर थकने का इंतज़ार न कर,

यूही थमना भी ज़रूरी है |

चल चल कर, बस कर.. रुक जाना

कही छाँव में बैठ आराम तो कर

कुछ बूँद पसीने की तो पोंछ

कुछ देर ज़रा विश्राम तो कर|

 ज़रा मुड़के देख ले अपनों को

 जो दूर बैठ तुझे ताक रहे

 तेरी मंज़िल की ओर बढ़ने की

 गति और पथ को सराह रहे |

 उनको भी एक मुस्कान तो दे

 कुछ देर बैठ कर बात तो कर,

 कह फिर उठ कर जाऊंगा मैं

 निर्जनता को बेज़ार तो कर |

 ठहर जा .. एक है पवन चली ..

 ज़रा रूककर एक सलाम तो दे ..

 आँखे मीच के बाह पसार,

 थमकर ज़रा सी श्वास तो ले |

 तेरी एक तबस्सुम उसकी भी,

 कुछ उसका भी आभार तो कर

 वो किरण धुप की फ़ैल रही,

 ज़रा थमकर कुछ इक़रार तो कर |

 कुछ क्षण इनको महसूस तो कर

 फिर से उठना जाना चल कर |

 ज़रा प्रतिबिम्ब को देख सही

 तेरी छवि कैसी है हाल तो पूछ

 नैनो में रस की धार है क्या ?

 या नमी भी है ये बात तो पूछ |

 ये चमक है बस या तेज प्रभा

 कुछ देर निहार के जांच तो कर

 ये तत्व तेरा उपयुक्त है आगे ..

 बढ़ने को ये सवाल तो कर |

 कोई कोना अंधियारा तो नहीं

 ज़रा रुक रुक कर चिराग तो कर

 कोई चाव बन रहा याद कहीं

 थम कर उसको फिर प्यार तो कर |

 जो साथ चले थे बचपन से

 उनका तो कभी दीदार भी कर

 किसी पुकार को था अनजान किया

  ज़रा रूककर उसकी बात तो कर|

 ये दौर है उड़ानों की ,  दौड़ना भी ज़रूरी है

 पर थकने का इंतज़ार न कर,

 यूही थमना भी ज़रूरी है |

                                                                              ~ Aishwarya Vashistha

                                                                                 Mumbai, India

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