Poetry

यादों के साये से

ज़िन्दगी की कश्मकश भरी राहों में,

मेरे सूने मन भरने की चाहों में,

किसी की बनायी कविता की पनाहों में,

आज एक भारी बरसात हुई,….

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

याद आई वो लड़की, याद आई उसकी बात,

कोई मेरे दिल पर बनाकर एक बाँध खुश था बहुत,

पर आज उसकी भी मात हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

करवटें लेकर आँखें खोली मैंने,

हल्की बत्ती की रोशनी में चादर की शिकन देख,

महसूस हुई तेरे हाथों की सुन्दर लकीरें,

जिसमें लाल चूड़ियों की खनक खलल डालती थी,

तू जब – जब अपनी पायल पहनकर इधर-उधर जाती  मैं अपनी  फाइलें बंद कर उनमें  गुम हो जाता था।

तू अपनी बचकानी हरकतें करके मुझे जो चिढ़ाती थी,

मैं टीवी बंद कर के बस तुझे ही देखना चाहता था।

मेरे घर वापस आने पर, जब तू मुस्कान के साथ दरवाजा खोलती थी,

मैं बस वहीं ठहर जाता था।

फिर जब तू मेरी टाई खींचकर अंदर लाती थी,

तब मैं अपना सिर खुजलाता था।

जाने किस जहाँ में अब गई है तू,

फिर कभी न मुलाकात हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

खिड़कियों पर लटकते जाले, अलमारी पर जमी धूल,

तू हमेशा साफ किया करती थी न, अब क्यूं गई है भूल।

तू मेरे कपड़े तह किया करती थी न,

देख तेरे आने की आस में, कपड़ों की गट्ठर कुर्सी पर लदी हुई है,

खूंटी पर टंगे मेरे पुराने बेल्ट रात को मुझे डराते हैं,

कहाँ गुम है तू, क्यूं मुझसे नाराज़ हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

हर पल, हर लम्हा, हर सास मुझे जा़या लगते हैं,

आज भी हम तुझे छत की सीढ़ियों पर चलते हुए पाया करते हैं।

आईने में तेरा अक्स देखकर, जब – जब मैं उन्हें छूता हूँ,

पर वो हमेशा मुझे यूं अकेले छोड़ जाया करते हैं।

तेरा साया हर पल ढूंढता हूँ मैं हर जगह,

पर तू मेरी दुनिया छोड़ किस दुनिया में चली गई है,

जहाँ से तू कभी न दिखी, न मिली, न बात हुई।

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

यह क्या था, जो बिस्तर पर पड़ा चमक रहा था,

अरे, यह तो तेरा वही हार था, जो टूट गया था।

पर मैं अपने काम में मशगूल उसे बनवाना भूल गया था,

और तू मुँह फुलाकर बैठ गई थी,

पर हाथों में मेरे चॉकलेट देख, तू फिर से उछल पड़ी थी।

तू फिर से क्यों नहीं आ जाती है, क्यूं इतना तड़पाती है,

क्यूँ दे रही इतनी सजा मुझे, मैं वादा करता हूँ तुझे,

तेरे आने पर मैं गाऊँगा, मैं गाऊँगा तेरे पसन्द के गाने।

मैं सबको यूँ सुनाएंगे, तेरे-मेरे प्यार के अफसाने,

फिर तू क्यूं कहना, न माने, न माने, न माने।

देख न, वो बूढ़ी अम्मा तुझे आज भी पूछती हैं,

जिसे तूने नया चश्मा बनवा कर दिया था।

मुझे पूरा करके ये अधूरी कहानी क्यूँ छोड़ गई,

आधे ही तो दिये थे मैंने तुझे खुशियों के सौगात,

आधे जो बचे थे, तू उनसे मुँह क्यूँ मोड़ गई।

अब दामन जो तेरा छूटा, मुझसे है ये खुदा भी रूठा,

अब तू भी न साथ हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

तेरी कविता में छिपे थे जो राज़ तेरे,

उन्हें मैं देना चाहता था अल्फाज़ मेरे।

तू जब-जब कुछ लिखकर मुझे सुनाती थी,

कभी मैं डूब जाता था उनमें और कभी ये रुलाती थी।

तू कहती थी बस कल्पना है तेरी,

पर मैं कहता था आवाज़ है तेरी।

तेरी खुद्दारी के पीछे छिपा तेरा नरम दिल,

बहुत नाज़ था मुझे तुझ पर और हमेशा रहेगा,

और याद रहेगा तेरे गाल पर वो काला तिल।

याद है तेरी लम्बी चोटी, तेरे आँख का काजल, वो कानों की बाली,

याद रहेगा, मेरे फूल तोड़ के लाने दौड़ाता हुआ वो माली।

तेरे ढीठपन के आगे मैं हमेशा झुक जाता था,

तेरी नासमझ बातों को समझकर मैं हँसता जाता था।

सुबह तू मेरा फोन तकिये के कवर में छिपाकर,

मुझे कुछ देर और रोका करती थी,

तू मेरे बालों की स्टाइल के लिए हमेशा टोका करती थी।

अब ऐसा कुछ नही है होता, बस मेरा दिल रोता है,

साथ में रह गए तेरी हरकतों के एहसास और साथ कुछ लोगों की खैरात हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

आज भी मुझे याद है, वो पहले इंटरव्यू पर मेरे शर्ट को ठीक करना, जो मैंने मोड़ा था,

मेरा हौसला बढ़ाकर तूने मुझे दरवाजे़ तक छोड़ा था।

तेरी पूजा करने की लगन देखकर मैं हैरान रह जाता था,

पर न जाने क्या बात थी, जो मैं तेरी दुआ में साथ बैठ जाता था।

तेरे बनाये हुए टेढ़े – मेढे़ रोटियों की मिठास,

या गर्मी में बनायी हुई तेरी शर्बत की गिलास,

मैं आज भी न भूला, न कभी भुला पाऊंगा।

तेरी शिद्दतों से मिली मुझे मेरी पहचान थी,

तूने मिटा दिया वजूद अपना क्योंकि आज सितारों में तेरी शान थी।

तू कैसे भूल गई ज़मीं के उस शख्स को जो कभी तेरी जान थी।

आज हर कोई त्यौहार मनाता है, हर कोई दिये जलाता है,

हर कोई रंग खेल रहा, हर कोई आतिशें करता है यहाँ,

हर किसी की जुमेरात हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई।

अब गफलत में मैं जीने लगा हूँ, खुद से नफरत करने लगा हूँ।

आज भी लगता है तू बगल में बैठी है मेरे,

क्योंकि मुझे महसूस होते हैं, सहलाते हुए हाथ तेरे,

जानता हूँ मैं तू नही है मेरे पास,

पर मैं अब भी जीता हूँ लेकर इक आस,

तू नही है पर तुझसे इक शिकायत रह गई है,

मेरे कमरे की दीवारों पर तू इक इबारत लिख गई है।

क्या कभी तू मुझे मिलकर ये बतायेगी,

क्या कभी मेरे सवालों के जवाब अपनी कविता में दिखायेगी?

बता न, क्यूं छिपाई थी, तूने मुझसे अपनी बीमारी,

हर चीज़ मेरे साथ, बस रह गई अन्दर तेरी अलग दुनियादारी,

हर बात पर तू मुझसे जीत जाती थी, पर इस बार तू मुझसे है हारी,

मैं नही समझ पाया आज तक कि क्या थी तेरी लाचारी।

मैं तेरे लिए जी रहा हूं क्योंकि,

ज़िन्दगी बिताने के लिए तेरी यादों से लड़ना पड़ता है।

मैं लड़ूंगा तेरे लिए, तेरे लिए ही जियूंगा,

तू नही आई तो क्या, मैं तो इक दिन आऊंगा,

जो रह गया है मन में मेरे, सब कुछ तुझे सुनाऊंगा।

तू समझे या ना समझे, आज तुझे मानता है मेरा धर्म,

और फिदा तुझपर मेरी जात हुई,

रात हुई, रात हुई और काली रात हुई,

किसी की बनायी कविता की पनाहों में एक भारी बरसात हुई।

                                                                                      ~ Pratibha Gupta 

                                                                                            Gonda, India

4 Comments

  1. Bahot hi sunder likha, keep writing!

  2. Aman Kumar Modanwal

    बहुत ही सुंदर।।??

  3. आदर्श गुप्ता

    बहुत ही प्यारे लाइन्स ???

  4. Aman Kumar Modanwal

    बहुत ही सुंदर।।??