मैं क्या पेश करूँ तुझे,
की जो मैं दिखा कर फ़ारख हो जाऊँ,
दावत–ए–दिल है तू माशूक़,
आज कौनसा जज़्बात लाऊँ।
महफ़िल है अहसासों की,
कभी शर्मिला, कभी बेबाक़ हो कर आऊँ,
दामन–ए–यार में सर झुका कर,
गिरफ़्तार हो जाऊँ।
ख़ास निस्बत है तुझसे,
कैसे झुठलाऊँ,
रेशम की कारीगरी है तू,
कदरदान मैं कहलाऊ।
मेरा रब मुझसे रुठा है,
तरकीब करूँ, उसे मनाऊँ,
तुझे माँगना है क़िस्मत को फ़ना कर,
तेरी इबादत कर, इबादत सीख जाऊँ।
दिल एक है तो क्या,
सौ टुकड़े करूँ तुझ पर लुटाऊँ,
पत्तियाँ है यह गुलाब की,
तेरा नाम ले ले इन्हें बनाऊँ।
आशिक़ी नहीं मोहब्बत नाम दे मुझे,
की मैं पूरा बर्बाद हो जाऊँ,
ऐसे आग़ोश में ले,
की सिवा तेरे किसी को ना चाहूँ।
तू बता की मैं कैसे क्या करूँ जों
नज़र मैं तेरी चश्मे बद्दूर हो जाऊँ
दावत ऐ दिल है तू माशूक़
आज कौनसा जज़्बात लाऊँ!
~Shabnum Khanum
Mumbai, India