Poetry

सफ़र

एक अजीब सा सुकून भरा सफ़र,
जिंदगी शुरू हुई तब से देखा यह सफ़र,

तेरी एहमियत  इतनी  ना थी तब,
बस तेरे साथ मे चलती गई यह सफ़र।
बचपन में दुनिया की ना समझ,
दोस्त यार के बीच गुज़रा एक सफ़र,
भगवान थे और रहेंगे मेरे लिए माता-पिता,
उनको ही माना मेरे  जिंदगी का साथी,
वो बचपन का सफ़र था हसीन।
बचपन गुज़रा ज़वानी नें क़दम रखा,
हाँ तेरे साथ एक और सफ़र शुरु कीया,
दुनिया  के नियम समझाने  लगी  तू,
मैंने  कहीं  पे  माना तो कहीं ज़िद पे अड़ी,
समझते-समझाते  यू कटा एक और सफर,
कुछ अच्छे  तो कुछ खट्टे लम्हे के साथ,
बस यूही  मैंने जिंदगी तेरे साथ कीया सफर।
थोड़ा  सा तूने  मुझे थकाया ,
थोड़ा  मैंने  तुझे ,
फ़िर वापिस से हाथ पकड़कर  चले ये  सफ़र ।
पर कभी कभी बहुत परेशान करती है मुझे तू,
मैं खुश हू फिर भी,
ए जिंदगी परेशान मत होना तू,
मुजे तेरे साथ चलना  है  ये सफ़र।

                                                               ~Dr. Medha Yagnik 

                                                              Ujjain, India 

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