कलम हाथ मे उठाते ही ,
भावनाओँ का ज्वार उमड़ने लगा |
विचारों का मंथन होने लगा |
शब्दों के छंद मूर्त रूप में ढलने लगे ||
अल्फाजों को जुबा मिलने लगी
कलम हाँथ मे उठाते ही ,
शब्द जो झरे लेखनी से तो ,
कहे अनकहे कई ज़ज्बात बयां होने को आतुर होने लगे |
तो कभी शब्द बाण अन्तर्मन को चोटिल करने लगे ||
कलम हाथ मे थामते ही ,
कई किरदार बेनकाब होने लगे |
तो कई अनाम रिश्तों को नए सन्दर्भ मिलनेलगे ||
अविकल्प स्मृतियाँ अक्स के मानिंद कागज पर उभरने लगी |
बंद होठों मे कैद लफ्ज कुछ कहने को बेताब होने लगे||
कलम को हाथ मे थामते ही ,
कई खामोश अफ़साने बयाने जहाँ को आतुर होने लगे |
कई बेतरतीब फ़साने सिमटने लगे ||
कई लफ्ज़ दिल की दहलीज़ से निकल कर निखरने लगे |
कलम उठाते ही अल्फाज बोल पड़े ,
शब्द जब झरे लेखनी से तो ,
कई बोझिल मन की परते खुलने लगी |
लफ्जो में बेबाकी झलकने लगी ||
उत्कृष्ट शब्द प्रवाह की लहर बहने लगी |
शब्द जब झरे लेखनी से तो ,
एक नए परिदृश्ये का चित्रण होने लगा ||
सूंदर.परिकल्पना निर्मित होने लगी |
नई इबारत की सरंचना होने लगी ||
कलम से लफ्जो के दरम्यान |
शब्द जब झरे लेखनी से तो ,
एक नयी रचना का सफर मंजिल को पाने लगा ||
~Pratima Mehta
Jaipur
शब्द झरे जब लेखनी से तो काव्य बन जाता है,
खूबसूरत लेखनी।???
Bahut sundar rachna hai ! Sadhuwad aapko !
लेखनी से शब्द झरे
थामते पर नहीं थमे
कागज़ पर जाय पड़े
विचार रखें खरे खरे
काव्य बने नये नये
हम एक बात कहें
प्रभु कृपा बनी रहे