ओह हो !देश की उन्नति का परिमाप तो देखिये |
प्रगति का परिहास तो देखिये |
खौफ़ज़दा हर शख्श ,यहाँ हो रहा है |
एहसास ए जिम्मेदारी से हर कोई ,दस्तबरदार हो रहा है |
सिक्को की ठनक यहाँ ,इज्जतें नफ़्स बन गयी है |
मुफलिसी ,एक गाली बन गयी है |
अन्नदाता यहाँ ,आत्मघात के लिए मजबूर हो रहा है |
भूखे का उदर ,उसकी आंत से चिपक रहा है |
बेचारी ,लाचारी मखौल का विषय बन गयी है |
प्रगति का ग्राफ तो देखिये,उन्नति का परिमाप तो देखिये
व्याभिचारो का ,बहएलियै सा जाल बिछा हुआ है |
दहशत गर्दो की ,वहशत फैली हुई है |
धनलिप्सा मे ,लिप्त मानव जात है |
सत्ताधीशो की ,मनमानी का बोलबाला है |
मक्कारो की महिमा का ,मंडन हो रहा है |
प्रगति का शिखर गान तो देखिये ,
गुनहगारो को मिलरही पनाह है |
भ्रस्टाचारों को मिल रहा पूर्ण सरक्षण है |
संस्कारो की शुचिता को ,मैला किया जा रहा है |
देशद्रोहियो को नवाज़ा जा रहा है |
अस्मिता यहाँ तार तार हो रही है |
रक्षक ही ,भक्षक बन बैठे है |
फिर भी देखिये तो !
प्रगति का शौर्ये गान ,जोर शोर से हो रहा है |
स्वप्रशंसा का गौरव गान गया जा रहा है |
ओह हो ये कैसी उन्नति का परिमाप है |
~Pratima Mehta
Jaipur, India
देश के हालात का सच्चाई बयान करती आपकी कविता ।