नहीं रहना अब दर्द के साये में
नहीं रहना अब प्रारब्ध के सहारे
नहीं रहना अब उम्मीद की सम्भावनाओ में
नहीं रहना अब अभिशापित शिला की तरह
नहीं रहना अब तिमिरमय निशिथ तले
नहीं रहना अब यथार्थ से नितांत परे
चलना है मुझे अब उन शहराहो पर
जहाँ अनुगूँज हो नव स्फूटन की ।
~Pratima Mehta
Jaipur, India