अब भी मेरी तन्हाई के साथी हो तुम l
मेरे वीराने घर की बहार हो तुम l
मेरे लबो की हंसी मे हो तुम l
मेरे तन मे खुशबु बन कर समय हो तुम l
मेरे बिस्तर की सलवटों मे हो तुम |
मेरे खूबसूरत नीड की सृजना हो तुम |
हमारे प्रेमकथा की साक्षी हो तुम |
मेरे जीवन का मकसद हो तुम |
मेरी सांसो का जीवनदान हो तुम |
फिर कैसे ये मान लू कि ,
अब सिर्फ एक याद का हिस्सा हो गए हो तुम |
दीवार पर टंगी एक तस्वीर सा भ्रम हो गए हो तुम
अब यहाँ नहीं हो तुम |
कही नहीं हो तुम |
~ Pratima Mehta
Jaipur, India
Wakayee bahut khubsurat kavita likha aapne.